सबसे बड़ा कष्ट क्या है ?
मेरे मन में कई बार यह प्रश्न उठता है कि संसार में मनुष्य के लिये सबसे बड़ा कष्ट क्या है। हर व्यक्ति को अपना ही कष्ट ही सबसे बड़ा लगता है। उसे हमेशा ही दूसरों का कष्ट अपने से छोटा लगता है। इसलिये मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि कौन सा कष्ट, किसका कष्ट इस पृथ्वी पर सबसे बड़ा है। अचानक एक दिन मुझे महाभारत की एक घटना याद आ गयी। घटना कुछ इस तरह है।
महाभारत की लड़ाई समाप्त हो गयी थी। कौरोवों के सौ में से निन्यानवे भाइयों की हत्या हो चुकी थी। केवल एक युयुत्सु बच गया था क्यों कि उसने लड़ाई में हिस्सा ही नहीं लिया था। वह लड़ाई को अनुचित समझता था एवं उसे लगता था कि पाण्डव सही है। जब यह समाचार गांधारी के पास पहुंचा तो वह बहुत ही दुखी हो गयी तथा अपने आँखों की पट्टी खोलकर कुरुक्षेत्र के मैदान के तरफ दौड़ पड़ी। आपको यह तो ज्ञात ही है की गांधारी ने अपने विवाह के समय से ही अपने आँखों पर पट्टी बांध रखी थी जिसे उसने इससे पहले सिर्फ एक अवसर पर हटाया था।
वह वदहवास दौड़ती हुई युद्ध के मैदान में पहुँच गयी तथा करुण विलाप करने लगी। उसकी विलाप ऐसी थी कि किसी के भी ह्रदय को द्रवित कर सकती थी। वहां उपस्थित सभी का ह्रदय करुणा से भर गया। सभी परेशांन हो गये। युद्ध के मैदान का दृश्य बड़ा ही मार्मिक हो गया। जब यह दृश्य श्रीकृष्ण ने देखा तो वह चिंतित हो गये। उन्होंने ने सोचा कि यदि यह दृश्य युधिष्ठिर ने देख लिया तो अनर्थ हो जायेगा। उसे विरक्ति हो जायेगी और वह राज्य छोड़ कर चला जायेगा। उसे राजगद्दी तथा राजमुकुट से भी विरक्ति हो जायेगी। यह सोच कर श्रीकृष्ण ने गांधारी को बहुत जोरों की कृत्रिम भूख लगा दी। यह भूख इतने जोरों की थी कि गांधारी की सहनशक्ति जबाब दे गयी और वह वहीँ युद्ध के मैदान में ही कुछ खाने के लिये ढूढ़ने लगी। लेकिन जिस मैदान में इतना भीषण महाभारत युद्ध हुआ हो वहां खाने को क्या मिलता। यह देखकर श्रीकृष्ण ने वहां पर एक कृत्रिम बेर का पेड़ पैदा कर दिया जिसमे बड़े-बड़े पके हुए मीठे बेर लटके हुए थे। यह देखकर गांधारी की भूख और बढ़ गयी और वह तेजी से उस पेड़ के तरफ बढ़ गयी। पेड़ के नीचे खड़े होकर हाथ ऊपर कर बेर तोड़ने का प्रयास करने लगी। लेकिन उसके हाथ ऊपर करते ही श्रीकृष्ण के चमत्कार से बेर के फल थोड़े से ऊपर उठ गये जहाँ उसका हाथ नहीं पहुँच पा रहा था। आखिर इधर-उधर देखकर उसने एक शव को खींचकर उस पेड़ के नीचे रखा तथा उस पर चढ़ कर फिर बेर तोड़ने का प्रयास करने लगी। उसने यह भी ध्यान नहीं दिया कि वह शव उसी के एक पुत्र का था। लेकिन फिर इस बार भी वही हुआ फल तोड़े से और ऊपर उठ गये। उसने दूसरा, तीसरा, चौथा और आखिर में अपने निन्यानवें पुत्रों का शव एक जगह ढेड कर दिया और उसके ऊपर चढ़ कर बेर का फल खाने के लिये तोड़ने का प्रयास करने लगी।
यह देखकर श्रीकृष्ण उसके पास आये और बोले की हे! माता यह आप क्या कर रही हैं? ये सारे शव जो आपने एकत्रित कर रखा है वह आपके पुत्रों का है और आप उस पर चढ़कर खाने का प्रयत्न कर रही है। कोई भी देखेगा तो क्या कहेगा? यह तो लज्जाजनक स्थिति है। आपको ऐसा करते हुए शर्म नहीं आती।
यह सुनकर गांधारी ने कुछ इस तरह कहा:-
वासुदेव जरा कष्टं, कष्टं निर्धन जीवनं !
पुत्र शोक महाकष्टं, कष्टातिकष्टं परमाक्षुधा !!
अर्थात, हे श्रीकृष्ण बुढ़ापा बहुत कष्टकर होता है, लेकिन गरीबी में जीवन बिताना उससे बड़ा कष्ट होता है। किसी के पुत्र का मृत्यु होना उसके लिये बहुत ही तकलीफदेह है, किन्तु भूख सभी कष्टों में सबसे बड़ा कष्ट है। भूखा प्राणी कोई भी अपराध कर सकता है, कोई भी पाप कर सकता है, यह तो सभी जानते हैं। भूख ने ही हमारे देश के एक बहुत ही बड़े भूभाग के लोगों को नक्सलवादी बना दिया है। मै इस विषय पर बहुत कुछ नहीं कहना चाहता हूँ।
मेरा सभी से निवेदन है कि भूखों कि सहायता अवश्य करें, उसे खाना जरूर खिलाएं अगर आपको कभी भी कहीं भी कोई भूखा मिल जाये।
वह वदहवास दौड़ती हुई युद्ध के मैदान में पहुँच गयी तथा करुण विलाप करने लगी। उसकी विलाप ऐसी थी कि किसी के भी ह्रदय को द्रवित कर सकती थी। वहां उपस्थित सभी का ह्रदय करुणा से भर गया। सभी परेशांन हो गये। युद्ध के मैदान का दृश्य बड़ा ही मार्मिक हो गया। जब यह दृश्य श्रीकृष्ण ने देखा तो वह चिंतित हो गये। उन्होंने ने सोचा कि यदि यह दृश्य युधिष्ठिर ने देख लिया तो अनर्थ हो जायेगा। उसे विरक्ति हो जायेगी और वह राज्य छोड़ कर चला जायेगा। उसे राजगद्दी तथा राजमुकुट से भी विरक्ति हो जायेगी। यह सोच कर श्रीकृष्ण ने गांधारी को बहुत जोरों की कृत्रिम भूख लगा दी। यह भूख इतने जोरों की थी कि गांधारी की सहनशक्ति जबाब दे गयी और वह वहीँ युद्ध के मैदान में ही कुछ खाने के लिये ढूढ़ने लगी। लेकिन जिस मैदान में इतना भीषण महाभारत युद्ध हुआ हो वहां खाने को क्या मिलता। यह देखकर श्रीकृष्ण ने वहां पर एक कृत्रिम बेर का पेड़ पैदा कर दिया जिसमे बड़े-बड़े पके हुए मीठे बेर लटके हुए थे। यह देखकर गांधारी की भूख और बढ़ गयी और वह तेजी से उस पेड़ के तरफ बढ़ गयी। पेड़ के नीचे खड़े होकर हाथ ऊपर कर बेर तोड़ने का प्रयास करने लगी। लेकिन उसके हाथ ऊपर करते ही श्रीकृष्ण के चमत्कार से बेर के फल थोड़े से ऊपर उठ गये जहाँ उसका हाथ नहीं पहुँच पा रहा था। आखिर इधर-उधर देखकर उसने एक शव को खींचकर उस पेड़ के नीचे रखा तथा उस पर चढ़ कर फिर बेर तोड़ने का प्रयास करने लगी। उसने यह भी ध्यान नहीं दिया कि वह शव उसी के एक पुत्र का था। लेकिन फिर इस बार भी वही हुआ फल तोड़े से और ऊपर उठ गये। उसने दूसरा, तीसरा, चौथा और आखिर में अपने निन्यानवें पुत्रों का शव एक जगह ढेड कर दिया और उसके ऊपर चढ़ कर बेर का फल खाने के लिये तोड़ने का प्रयास करने लगी।
यह देखकर श्रीकृष्ण उसके पास आये और बोले की हे! माता यह आप क्या कर रही हैं? ये सारे शव जो आपने एकत्रित कर रखा है वह आपके पुत्रों का है और आप उस पर चढ़कर खाने का प्रयत्न कर रही है। कोई भी देखेगा तो क्या कहेगा? यह तो लज्जाजनक स्थिति है। आपको ऐसा करते हुए शर्म नहीं आती।
यह सुनकर गांधारी ने कुछ इस तरह कहा:-
वासुदेव जरा कष्टं, कष्टं निर्धन जीवनं !
पुत्र शोक महाकष्टं, कष्टातिकष्टं परमाक्षुधा !!
अर्थात, हे श्रीकृष्ण बुढ़ापा बहुत कष्टकर होता है, लेकिन गरीबी में जीवन बिताना उससे बड़ा कष्ट होता है। किसी के पुत्र का मृत्यु होना उसके लिये बहुत ही तकलीफदेह है, किन्तु भूख सभी कष्टों में सबसे बड़ा कष्ट है। भूखा प्राणी कोई भी अपराध कर सकता है, कोई भी पाप कर सकता है, यह तो सभी जानते हैं। भूख ने ही हमारे देश के एक बहुत ही बड़े भूभाग के लोगों को नक्सलवादी बना दिया है। मै इस विषय पर बहुत कुछ नहीं कहना चाहता हूँ।
मेरा सभी से निवेदन है कि भूखों कि सहायता अवश्य करें, उसे खाना जरूर खिलाएं अगर आपको कभी भी कहीं भी कोई भूखा मिल जाये।
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