Tuesday, 19 March 2013


कभी  भी यह मत सोचियेगा कि मेरा जितना बुरा होना था वह हो गया अब और क्या बुरा होगा

बहुत ही पुरानी बात है। एक पंडितजी थे। बहुत ही विद्वान थे। वो बहुत ही अच्छे भविष्यवेत्ता थे। वो किसी का भी कपाल देखकर उसका भविष्य बता सकते थे। एक दिन वो घूमने के लिये घर से बाहर जा रहे थे। उन्हें सड़क के किनारे एक खोपड़ी दिखाई पड़ गयी। वैसे तो खोपड़ी में कोई विशेष बात नहीं थी, वह किसी ऐसे आदमी की खोपड़ी थी जिसे मरे हुए बहुत दिन हो गए थे। उस खोपड़ी से मांस वगैरह गल कर निकल गया था। वह एक बिलकुल सूखी हुई खोपड़ी थी। लेकिन पंडितजी की नजर जब उस खोपड़ी पर पड़ी तो वह चौंक गये, तथा उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ। उस खोपड़ी के माथे पर लिखा हुआ था की इसकी अभी और दुर्दशा होनी बाँकी है। पंडितजी सोचने लगे कि, इसकी और क्या दुर्दशा होनी बाँकी है, ये आदमी कई महीने या शायद कई साल पहले मर चुका है। इसका मांस वगैरह भी गल कर इसके हड्डी से अलग हो गया। सोचते-सोचते पंडितजी बहुत ही परेशान हो गये, उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या किया जाये। उन्हें यह जानने की भी उत्सुकता थी की इसका और क्या होना है। आखिर में बहुत सोच-विचार करने के बाद उन्होंने उस खोपड़ी को उठा कर अपने थैले में डाल लिया और घर आ गये। घर में उन्होंने पुस्तक बाली आलमारी पर उसे संभाल कर रख दिया और फिर बाहर चले गये। 

थोड़ी देर के बाद उनकी पत्नी घर आयी तो वो क्या देखती हैं कि पुस्तक बाली आलमारी पर एक खोपड़ी रखा हुआ है। पहले तो उन्हें बहुत ही गुस्सा आया कि घर के अन्दर ये खोपड़ी किसने ला कर रख दिया। फिर उन्हें खुद ही समझ में आ गया की यह पंडितजी का काम होगा। फिर वह खुद ही बडबडाने लगी की यह पंडित भी पागल हो गया है, पता नहीं कहाँ से एक खोपड़ी लाकर घर में रख लिया है। उन्होंने खोपड़ी को उठाया और उसे खिड़की के रास्ते बाहर फेंक दिया। शाम के समय जब पंडितजी घर आये तो उन्होंने देखा कि खोपड़ी गायब है। वह चिन्तित हो गये कि खोपड़ी आखिर गया कहाँ। अन्त में और कोई उपाय नहीं देखकर उन्होंने अपनी पत्नी से खोपड़ी के बारे में पूछा। पत्नी तो पहले से ही गुस्से में थी, उन्होंने पहले तो पंडितजी को बहुत ही डांटा कि ये क्या अंटशंट चीज लाकर घर में रखते हो मैंने उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया है। पंडितजी ने उन्हें बहुत ही समझाने की कोशिश कि उन्होंने उसे कुछ अन्वेषण करने के लिये घर में लाकर रखा है। लेकिन उनकी पत्नी कहाँ मानने वाली थी। वो बिलकुल ही उस खोपड़ी को घर में रखने के लिये राजी नहीं हुई। 

आखिर पंडितजी भी कहाँ मानने वाले थे क्यों कि अभी भी उनकी उत्सुकता बनी हुयी थी। वो  चुपके से बाहर गये और चुपचाप छुपाकर उस खोपड़ी को ले आये तथा उसे अपने एक बक्से के अन्दर रख कर उसे ताला लगा दिया तथा चाभी अपने पास रख ली। उनकी पत्नी भी थोड़ी दूर से छुपकर उनका यह सारा क्रिया-कलाप देख रही थी। दूसरे दिन जब पंडितजी जब बाहर चले गये तो उनकी पत्नी बक्से के पास गयी और एक पत्थर के सहारे उस ताला को तोड़ दिया फिर सोचने लगी यह  पंडित तो इल्कुल ही पागल हो गया है। यह ऐसे नहीं मानेगा, इसका तो कुछ पुख्ता इंतजाम करना पड़ेगा। यह सोच कर उन्होंने खोपड़ी को बाहर निकाला तथा उसे ऊखल में डाल कर मूसल के सहारे अच्छी तरह चूर कर चूरा बना दिया, तथा उस चूरे को समेट कर बाहर फेंक आयी।

शाम के समय जब पंडितजी घर आये तो देखा की बक्से  का ताला टूटा हुआ है और खोपड़ी गायब है। यह देखकर वह अवाक् रह गये। फिर उन्होंने हिम्मत कर के अपनी पत्नी से खोपड़ी के बारे में पूछा। उनकी पत्नी ने उन्हें सारा वृतान्त सुना दिया, फिर पूछा कि अब क्या करोगे, अब खोपड़ी कैसे लाओगे। पंडितजी ने कहा कि अब मुझे कुछ भी नहीं करना है, मुझे समझ में आ गया कि उस खोपड़ी कि यही दुर्दशा होनी बाँकी  थी। पर मुझे यह क्यों नहीं दिखा कि उसकी यह दुर्दशा मेरे यहाँ होनी थी। मेरा उस खोपड़ी के ऊपर अन्वेषण समाप्त हो गया।
कभी  भी यह मत सोचियेगा कि मेरा जितना बुरा होना था वह हो गया अब और क्या बुरा होगा

No comments:

Post a Comment